आई.एस.आई.एस., किसी के दिल में खौफ के लिए सिर्फ नाम ही काफी है। खौफनाक दहशदगर्दी और हैवानियत की सारी हदें पार करने वाला आतंकवादी गुट। अभी तक सीरिया और इराक में लाखों लोगों की जान ले चूका है। सारी दुनिया इस आतंकवादी गुट से दहशत में है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। भारत के भी कई युवाओं के आई.एस.आई.एस. में शामिल होने की खबरें मिलती रही है।
दुनिया के कई देश आई.एस.आई.एस. के खात्मे के लिए एक जुट हुए है। लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली। इन देशों में दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका का नाम भी है। या फिर आप ऐसा भी कह सकते है कि आई.एस.आई.एस. के विरुद्ध कार्यवाही में अमेरिका सभी देशो की अगुवाई कर रहा है।
लेकिन ऐसा क्या है कि जो लगभग एक वर्ष बीत जाने के बाद भी कामयाबी नहीं मिली। इसके दो ही कारण हो सकते है, एक या तो आई.एस.आई.एस. इतना शक्तिशाली है और उसके पास इतने खतरनाक हथियार है कि उसका सामना पूरी दुनिया मिलकर भी नहीं कर पा रही। दूसरा कारण ये हो सकता है कि अमेरिका जो पूरी दुनिया की अगुवाई कर आई.एस.आई.एस. से लड़ रहा है, वो लड़ ही नहीं रहा सिर्फ दिखावा कर रहा है।
इस बात में सच्चाई हो सकती है क्यूंकि एक साल काफी बड़ा समय होता है। आज अगर दुनिया की दो सबसे ताकतें भी आपस में लड़ती है तब भी सिर्फ दस से पंद्रह दिनों में ही फैसला हो सकता है। इससे ज्यादा समय तक कोई भी देश नहीं लड़ सकता। लेकिन आई.एस.आई.एस. में ऐसा क्या है कि पूरी दुनिया भी एक साल में उसको ख़त्म नहीं कर पाई।
इस बात को रूस की सिर्फ तीन दिनों की सैन्य कार्यवाही से बल मिलता है जिसमे रूस ने आई.एस.आई.एस. का कुछ क्षेत्रों से लगभग सफाया कर दिया है। अगर सिर्फ अकेले रूस ऐसा कर सकता है तो एक साल से क्या हो रहा था। क्यों लाखों लोगों को मरने दिया गया।
इससे अमेरिका की सम्राज्य्वादी नीति उजागर होती है। अमेरिका दुनिया के ज्यादा से ज्यादा देशों में अपनी सेना की मौजूदगी चाहता है। पूरा पश्चिमी एशिया इसका उदाहरण है। लगभग पिछले 50 सालों से अमेरिका की वहां मौजूदगी है लेकिन शांति आज तक कायम नहीं हो सकी है।
आई.एस.आई.एस. को लेकर एक दूसरा पहलु भी है। आई.एस.आई.एस. को लड़ने के लिए मिलने वाले हथियार। आज अगर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध होता है तो ये दोनों ही मुल्क सिर्फ 15 दिनों तक ही लड़ सकते है। इनके पास भी इससे ज्यादा दिनों तक लड़ने के लिए गोला बारूद और हथियार नहीं है। लेकिन आई.एस.आई.एस. एक साल से सभी अधिक समय से लड़ रहा है। इतने अधिक समय तक लड़ने के लिए हथियार कहाँ से आ रहे है। अमेरिका पर कई बार आई.एस.आई.एस. के क्षेत्र में हथियार गिराने का इलज़ाम भी लग चूका है। हालांकि अमेरिका ये कहता आया है कि ये हथियार उसने अपने सैनिकों के लिये गिराये लेकिन आई.एस.आई.एस. उन्हें ले भागा। ये बात किसी के गले नहीं उतरती लेकिन विरोध कोई नहीं कर सकता क्यूंकि आखिर दुनिया की सबसे बड़ी ताक़त की बात कौन काट सकता है।
लेकिन अमेरिका की इस साम्राज्यवादी नीति को रूस ने बोलकर नहीं करके आइना दिखाया है। रूस ने सिर्फ तीन दिनों में ही आई.एस.आई.एस. की जड़ो को हिला कर रख दिया है। उसके हज़ारों आतंकवादी मारे जा चुके है। रूस की सेना ने कई इलाकों को आई.एस.आई.एस. से खाली करा दिया है। आई.एस.आई.एस. और उसके साथी गुटों के मुख्य हथियार डिपो को तबाह कर दिया है। रूस ने समुन्द्र से भी सीरिया पर हमले तेज कर दिये है। रूस ने समुन्द्र में चार युद्ध पोतों को तैनात किया है।
वही इराक और सीरिया में रूस के बढ़ते दखल को लेकर अमेरिका ने नाराज़गी जाहिर की है और मॉस्को को चेतावनी भी है। अमेरिका ने रूस पर आरोप लगाया है कि वो 65 देशों के गठबंधन जिसमे अमेरिका भी शामिल है, द्वारा आई.एस.आई.एस. के विरुद्ध की जा रही कार्यवाही को कमजोर कर रहा है। अमेरिका की इस चेतावनी से साफ़ दीखता है कि अमेरिका और रूस का मकसद एक है तो फिर नाराज़गी कैसी। जो अमेरिका एक साल में नहीं कर पाया वो रूस ने तीन दिन में कर दिखाया।
जगजाहिर है कि अमेरिका का मकसद इराक के तेल समृद्ध क्षेत्रों को कब्जाए रखना है। रूस के बढ़ते हस्तक्षेप से और इराक द्वारा रूस से मदद की गुहार लगाने के बाद इन क्षेत्रों पर अमेरिका का दबदबा कमजोर होगा। जिससे अमेरिका को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक और राजनितिक दोनों नुक्सान होंगे। आने वाले समय में आई.एस.आई.एस. को लेकिन रूस और अमेरिका टकराव देखने को मिल सकता है।
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